प्रसार शिक्षा | दर्शन | विशेषताएँ

प्रसार शिक्षा का दर्शन एवं विशेषताएँ

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मैं Dr. Binita Maurya आपकी Home Science गाइड। आज मैं इस पोस्ट में प्रसार शिक्षा के दर्शन की विशेषताओं के बारे में जानकारी देने का प्रयास करूँगी। 

 सबसे पहले हम जानेंगे कि प्रसार शिक्षा दर्शन का शाब्दिक अर्थ क्या है?

प्रसार शिक्षा का दर्शन मनुष्य के विकास एवं उसके महत्व पर आधारित है । प्रसार‘ का अर्थ है  फैलानाविस्तार करना अर्थात नवीन सूचनाओं एवं तकनीकों को जन-जन तक पहुँचाना । शिक्षा का अर्थ है “मनुष्य के सोचविचार, कौशल, ज्ञान तथा कार्य को करने की शैली में परिवर्तन लाकर व्यक्ति के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना।”

दर्शन का शाब्दिक अर्थ है– बुद्धि‘ अर्थात ज्ञान‘ से प्रेम करना।  दर्शन शब्द अंग्रेजी भाषा के “Philosophy” का हिंदी रूपांतर है जो ‘Philos’ तथा ‘Sophia’ से मिलकर बना है। ‘Philos’ का अर्थ है ज्ञान‘ या बुद्धि‘ तथा ‘Sophia’ का अर्थ है अनुराग‘ (प्रेम)

इस प्रकार दर्शन का अर्थ ज्ञान से अनुराग‘ अर्थात “बुद्धि से प्रेम होना है।”

Kelsey तथा Hearne ने इसे इस प्रकार परिभाषित किया है- “प्रसार शिक्षा का दर्शन व्यक्ति के महत्व पर आधारित है जिसमें ग्रामीण जनता तथा राष्ट्र की उन्नति के लिए उत्तरोत्तर विकास हेतु प्रेरित किया जाता है ।”

और अब जानते हैं प्रसार शिक्षा का दर्शन क्या है?

प्रसार शिक्षा का दर्शन अत्यंत ही विस्तृतलाभकारी तथा सुव्यवस्थित है  इसका दर्शन प्रत्येक व्यक्ति का उत्थान‘ कर सुखी जीवनप्रदान करना है। प्रसार शिक्षा का दर्शन ग्रामीणों की उन्नति तथा प्रगति के साथ प्रत्येक परिवारसमाजप्रान्तराष्ट्र एवं सम्पूर्ण विश्व की उन्नति प्रगति से है। इसका दर्शन मानव सेवा से है ताकि वे मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं को उपभोग करने से वंचित नहीं रहने पाएं। यह प्रत्येक जातिसम्प्रदाय के लोगों के साथ मिल-जुल कर कार्य करना सिखाती है तथा आपसी भेद-भाव मिटाकर एक विकसित समाज का निर्माण करती है ताकि सभी वैमनस्य भूल कर एक सूत्र में बंधकर राष्ट्र के मुख्य धारा के साथ जुड़ जाये। 

प्रसार शिक्षा का दर्शन  लोगों में तीन प्रकार से परिवर्तन लाता है –

(i) मनोवृत्ति में परिवर्तन 

(ii) व्यवहार में परिवर्तन 

(iii) कार्य संपादन शैली में परिवर्तन

प्रसार शिक्षा का दर्शन लोगों की मनोवृत्ति में परिवर्तन ला कर उनके व्यवहार में परिवर्तन लाता है जिससे कार्य करने की शैली में सुधार होता है। प्रत्येक व्यक्ति की उन्नति करना तथा उनके जीवन में खुशियाँ लाना ही प्रसार शिक्षा का मुख्य दर्शन है ताकि एक शांतिपूर्णउन्नतिशील राष्ट्र का निर्माण हो। 

आइये अब जानते हैं प्रसार शिक्षा का दर्शन एवं विशेषताएं 

प्रसार शिक्षा के दर्शन का उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास है। प्रसार शिक्षा में मानव कल्याण के लिए ही कार्यक्रम बनाये जाते हैं। इसकी शिक्षण विधियाँदर्शन सभी कुछ मानव के चहुँमुखी विकास के लिए है। 

प्रसार शिक्षा का दर्शन इस प्रकार है –

(1) मानवता वादी दर्शन- प्रसार शिक्षा का दर्शन मुख्यतः मानवता वादी‘ है। प्रसार के सभी कार्यक्रम मनुष्य के कल्याण एवं इसके सुख शांति के लिए बनाये जाते है। इसका लक्ष्य सभी उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करके मनुष्य के जीवन को सुखद एवं शांतिपूर्ण बनाना है। 

(2) यथार्थ वादी दर्शन– प्रसार शिक्षा का दर्शन यथार्थ वादी है। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करनास्थायी संस्थाओं  का विकास करना यथार्थ वादी दर्शन के अंतर्गत आता है।  प्रसार शिक्षा के सभी कार्यक्रम व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा उनके सर्वांगीण विकास के लिए किए जाते हैं। यदि व्यक्ति की मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होगी तो उसके ज्ञानबुद्धि कौशल में विकास भी नहीं होगा।

(3) आदर्शवादी दर्शन – प्रसार शिक्षा का दर्शन उच्च आदर्शों पर आधारित है। भारतीय दर्शन में ज्ञानदानतपत्यागमनोबल,कृतज्ञतासहिष्णुताधर्मकर्तव्य-परायणता आदि सद्गुणों पर बल दिया गया है।  ये सभी गुण प्रसार शिक्षा के लिए भी आवश्यक है। प्रसार कार्यकर्ता को अपने उद्देश्यों, मूल्योंआदर्शों को ग्रामीणों के समक्ष ऊँचा रखना चाहिए तभी ग्रामीण जनता उसे अपना आदर्श‘ (Ideal) मानेंगे तथा उस पर दिल से विश्वास करेंगे और प्रसार कार्य सफल होगा। 

(4) प्रयोग वादी दर्शन – प्रसार शिक्षा का दर्शन पूरी तरह से प्रयोग वादी है।  यह एक व्यावहारिक शिक्षा है।  इसमें लोगों को सैद्धांतिक ज्ञान न देकर उन्हें व्यावहारिक ज्ञान दिया जाता है।  यह ग्रामीणों को नवीन-खोजोंनवीन-तकनीकोंनवीन-अनुसंधानों के बारे में सिखाता है।  जिसे अपनाकर उनके रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठा सकें । यह दो तरफा  शिक्षण पद्धति है जिसमें ग्रामीणों की समस्याओं को प्रयोगशाला तक लायी जाती है तथा प्रयोगशाला में विकसित अनुसंधानों को उनके खेतों/घरों तक जा-जाकर दिया जाता है और उसे अपनाने के लिए प्रेरित भी किया जाता है।  तथा सफलताओं और असफलताओं का विश्लेषण कर उसमें सुधार कर पुनः प्रयोग हेतु ग्रामीण जनता के बीच लाया जाता है। 

(5) जरूरत वादी या सारवादी दर्शन – प्रसार शिक्षा का दर्शन जरूरत वादी‘ अर्थात आवश्यकता वादी‘ है। यह लोगों को मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल देता है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति तब तक सुखी व सम्पन्न  नहीं रहेगा जब तक उसकी आवश्यक तथा आरामदायक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो जाए। अतः ऎसे प्रसार कार्यक्रम नियोजित व क्रियान्वित किए जाएँ जिसमे उन्हें धन की प्राप्ति होताकि वे मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। 

(6) परिणामवादी दर्शन – प्रसार शिक्षा का दर्शन परिणामवादी है। प्रसार कार्यक्रम के नियोजन एवं सम्पादन में लचीलापन रखना अति आवश्यक है ताकि ग्रामीणों की आवश्यकताओं एवं रुचिओं को ध्यान में रखते हुए इसमें आवश्यक परिवर्तन कर पुनः प्रयोग में लाया जा सके।

(7) पुनर्निर्माण में विश्वास का दर्शन – प्रसार शिक्षा का दर्शन पुनर्निर्माण में विश्वास करता है। प्रकृति परिवर्तनशील है। यहाँ प्रतिदिन परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कभी अधिक बरसात से बाँध टूट जाते हैंसड़के खराब हो जाती हैंतो उनकी मरम्मत करनी पड़ती है। गर्मी के मौसम मेंपानी की व्यवस्था उन गावों में करनी पड़ती हैजहाँ पानी का बहुत अभाव होता है। अतः प्रसार दर्शन का कार्यक्रम इन परिवर्तनों को ध्यान में रख कर करना है। पुरानी चीज़ों का विनाश तथा नई चीज़ों का निर्माण होता रहता है। अतः उसी के अनुसार कार्यक्रम का नियोजन कर उनका क्रियान्वयन करना चाहिए।

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आशा है कि आपको इस लेख में प्रसार शिक्षा दर्शन का शाब्दिक अर्थ क्या है? (prasar shiksha darshan ka shabdik arth kya hai ?), प्रसार शिक्षा का दर्शन क्या है ? (prasar shiksha ka darshan kya hai?)  व प्रसार शिक्षा का दर्शन एवं विशेषताएं (prasar shiksha ka darshan evam visheshtayen) को आपने अच्छी तरह समझ लिया होगा। यदि यह लेख आप को पसंद आया हो तो इसे लाइक(like) करें और अपने दोस्तों को भी शेयर(share) करें ताकि उन्हें भी इस विषय से जुड़ी जानकारी मिल सके और आगे भी इसी प्रकार की जानकारी के लिए आप मेरी वेबसाइट www.binitamaurya.com को विजिट करें।  धन्यवाद !!!

        

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