गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा का सिद्धांत

 

Dear Friends,
आज इस लेख में हम जानेंगे कि गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा का सिद्धांत क्या है, गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा किसके सिद्धांत पर कार्य करती है, तथा गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा की सफलता एवं ग्रामीणों की सहभागिता के लिए गृह विज्ञान प्रसार  कार्यकर्ताओं को किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। तो आइये शुरू करते हैं-

गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के सिद्धांत-

किसी भी कार्य को करने के लिए कुछ सिद्धांत बनाए जाते हैं, सिद्धांतों का आशय उन कार्यों से होता है जो प्रयास को सफल बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। गृह विज्ञान विस्तार या प्रसार शिक्षा की सफलता एवं ग्रामीण महिलाओं की सहभागिता के लिए गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ताओं को निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए-

 

गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के प्रमुख सिद्धांत

प्राथमिक आवश्यकता का सिद्धांत-

गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा प्राथमिक आवश्यकता के सिद्धांत पर कार्य करती है। प्रसार कार्यकर्ता को कार्य आरंभ करने से पूर्व ग्रामीण महिलाओं की अनिवार्य आवश्यकताओं को ठीक प्रकार से समझ लेना चाहिए। जैसे- यदि उस क्षेत्र में कोई रोग फैला हो, जैसे- टाइफाइड, पीलिया, मलेरिया, हैजा, आदि तो सबसे पहले ग्रामीण महिलाओं को उसके निवारण के उपाय बताए जाने चाहिए। इसके विपरीत यदि उस समय उन्हें पौष्टिक भोजन बनाना सिखाया जाए तो फिर कोई महिला इन कार्यक्रमों में रुचि नहीं लेगी।

आत्मनिर्भरता का सिद्धांत-

कोई भी व्यक्ति तभी प्रगति(Progress) कर सकता है जब वह स्वयं स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर हो। यदि हम ग्रामीण व्यक्तियों एवं महिलाओं का उत्थान करना चाहते हैं तो उन्हें आत्मनिर्भर बनाना होगा। इसके लिए उन्हें रोजगार परक शिक्षा देना होगा।

प्रसार कार्यकर्ता को चाहिए कि वह ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करें जैसे प्रसार कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीणों को कोई कार्य सिखा कर प्रारंभ में आर्थिक सहायता या कच्चा माल देकर लघु उद्योग शुरू कराया जा सकता है। जिससे वह अर्थोपार्जन कर आत्मनिर्भर बनेंगे और अपनी सहायता स्वयं कर सकेंगे।

 

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स्वयं करके सीखने का सिद्धांत-

प्रसार कार्यों में स्वयं करके सीखने का सिद्धांत अधिक प्रभावशाली होता है। कोई भी कार्य जब व्यक्ति स्वयं करके देखता है तब वह उसे अच्छी तरह से सीख सकता है। प्रसार कार्यकर्ता को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए। उसे ग्रामीण महिलाओं को पहले प्रदर्शन द्वारा कोई चीज बताएं, जैसे आंवले का जैम बनाना, उसके बाद अगली बार सारी सामग्री उनके समक्ष रखकर अपने निर्देशन में उन्हीं से बनवाएं, इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा वे कार्य को अच्छी तरह सीख व कर सकेंगी।

परिवार तक पहुंच का सिद्धांत-

गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता को कार्यक्रम की योजना इस प्रकार बनानी चाहिए जिससे परिवार के सभी लोग लाभान्वित हो सकें। तभी कार्यक्रम को सफलता मिलेगी। जैसे- यदि शाम के समय ग्रामीण महिलाओं के प्रशिक्षण का कोई कार्यक्रम आयोजित करें तो उसी समय उनके परिवार के बच्चों के लिए भी कोई आयोजन करना चाहिए जिससे गृहिणियां निश्चिंत होकर कार्यक्रम में भाग ले सकेंगी।

समायोजन का सिद्धांत-

गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो जहां है, जिस स्थिति में है, वहीं से कार्य आरंभ करके उनमें परिवर्तन लाना है। प्रसार कार्यकर्ता को सबसे पहले कार्य क्षेत्र के संपूर्ण वातावरण एवं परिस्थितियों का अध्ययन कर लेना चाहिए, उसे वहां के लोगों की योग्यता, मानसिक स्तर, क्षमता का अध्ययन करना चाहिए और उनके हिसाब से शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। जैसे – अगर ग्रामीण साक्षर है तो उन्हें शिक्षा देने के लिए चार्ट, ब्लैकबोर्ड आदि का उपयोग किया जा सकता है, किंतु यदि वे अशिक्षित है तो नाटक, नृत्य, लोकगीत, कठपुतली, फ़िल्में, गीत, आदि शिक्षण में अधिक प्रभावशाली माध्यम होंगे।

प्रसार कार्यकर्ता को क्षेत्र की स्थिति के हिसाब से समायोजन करके उन्हें शिक्षित करना चाहिए जैसे – यदि किसी गांव में ऊन की अत्यधिक उपलब्धता है तो कार्यकर्ता को वहां की स्त्रियों को ऊन के स्वेटर, मफलर आदि बनाना सिखाना अधिक लाभदायक होगा।

 

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प्रशिक्षित विशेषज्ञों का सिद्धांत –

प्रसार कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ताओं को समय-समय पर गृह विज्ञान विशेषज्ञों, कृषि विशेषज्ञों, विषय विशेष के विद्वानों अथवा डॉक्टरों आदि को बुलाकर ग्रामीणों से उनकी भेंट करवाई जाए। यह विशेषज्ञ ग्रामीणों की समस्याओं को सुनकर, समझ कर उनकी समस्याओं के लिए उपयुक्त सुझाव दे सकेंगे। ग्रामीणों को अपनी समस्याओं का तुरंत हल पाकर संतुष्टि होगी जिससे वे अधिक लाभान्वित होंगे।

जाति धर्म निरपेक्षता का सिद्धांत –

गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ताओं को ग्रामीण समाज में, वर्ग, जाति, धर्म, संप्रदाय के भेद-भाव को मिटाकर सभी के कल्याण हेतु निष्पक्षता के साथ कार्य करें। जिनको उत्थान की, सहायता की आवश्यकता हो उन सभी के कल्याण के लिए कार्य करें।

सहभागीदारी का सिद्धांत –

गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वे ग्रामीण महिलाओं और ग्रामीण महिला नेताओं के साथ मिलकर उनकी राय लेकर ही कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करें। ऐसा करने से ग्रामीण महिलाएं अपने महत्व को समझ सकेंगी और कार्यक्रम में रुचि लेंगे और अधिक से अधिक सहयोग देंगी।

प्रसार कार्यकर्ता को महिलाओं की भागीदारी की प्रशंसा भी करनी चाहिए जिससे उनमें आत्मविश्वास पैदा होगा और वह भविष्य में हमेशा सहयोग देने के लिए तत्पर रहेंगी।

स्वावलंबन का सिद्धांत –

व्यक्ति जब अपनी सहायता स्वयं करने को तत्पर होता है तथा स्वयं कार्य निष्पादन करता है, तो व्यक्ति में आत्मनिर्भरता एवं स्वावलंबन की भावना का विकास होता है। जिससे वह निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करता है।

सहयोग का सिद्धांत –

गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ताओं को कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए ग्रामीणों का सहयोग लेना आवश्यक है, क्योंकि ग्रामीणों के विकास और सहयोग से ही वह प्रसार कार्यक्रमों को कार्यान्वित करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

 

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स्थानीय संसाधनों के उपयोग का सिद्धांत –

गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ताओं को ग्रामीण क्षेत्र में प्रसार कार्य करते समय यथासंभव स्थानीय संसाधनों का उपयोग ही करना चाहिए तथा आवश्यक होने पर ही बाहर से सहायता लेनी चाहिए। उदाहरण के लिए – ग्रामीण महिलाओं को ऐसे लघुउद्योग सिखाने चाहिए जिसके लिए सभी कच्ची सामग्री व श्रमिक वहीं स्थानीय रूप से उपलब्ध हों। केवल जरूरी उपकरण ही बाहर से मंगवाना पड़े।

राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों की अनुसारता का सिद्धांत –

ग्रामीण उत्थान के लिए सरकार द्वारा अनेक नीतियां निर्धारित की जाती है तथा अनेक योजनाएं बनाई जाती है, तथा उनके कार्यान्वयन हेतु तकनीकी एवं आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है, जो मुख्यतः ग्रामीण उद्योग-धंधों, स्वास्थ्य एवं स्वच्छ्ता, साक्षरता कार्यक्रम, गृह-निर्माण, ग्रामीण रोजगार सुविधा, मजदूरी दर, मात्र एवं शिशु कल्याण आदि से संबंधित होती है।

गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता को चाहिए कि वह इन नीतियों एवं कार्यक्रमों की जानकारी को समय-समय पर ग्रामीणों तक पहुँचाए, जिससे वे इन योजनाओं का समुचित लाभ उठा सके।

मूल्यांकन का सिद्धांत –

किसी भी कार्यक्रम की सफलता या असफलता को मूल्यांकन द्वारा ही आंका जाता है। मूल्यांकन के अंतर्गत अगर कार्यक्रम के प्रति लोगों की उदासीनता या विफलता के संकेत मिलते हैं तो प्रसार कार्यकर्ता को उसका कारण ढूंढना चाहिए तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन में आवश्यक सुधार करना चाहिए।

 

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