गृह विज्ञान के तत्व एवं क्षेत्र
इस लेख में गृह विज्ञान के विभिन्न शाखाओं या कह ले की विभिन्न क्षेत्रों की सविस्तार चर्चा करेंगे तथा गृह विज्ञान के विभिन्न तत्वों की विस्तृत चर्चा करेंगे जो प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे NET, JRF, TGT, PGT, GIC, LT, B.A, M.A आदि में पूछा जाता है
प्रश्न:
गृह विज्ञान के विभिन्न तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान के तत्व–
गृह विज्ञान एक सामाजिक व व्यवहारिक विज्ञान है। जो घर-परिवार को सुखी संपन्न एवं समृद्ध बनाने, उससे संबंधित समस्त आवश्यकताओं एवं योजनाओं का सुव्यवस्थित अध्ययन कराता है। गृह विज्ञान विषय में वे सभी तत्व सम्मिलित हैं जो पारिवारिक उद्देश्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
गृह विज्ञान के मूल तत्व इस प्रकार हैं-
1. पारिवारिक सदस्यों का बहुपक्षीय विकास–
इसके अंतर्गत परिवार के प्रत्येक सदस्यों की सुख-सुविधाओं उनकी रूचियों आदि का ध्यान रखा जाता है, जिसके द्वारा उनका- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार का विकास हो और उनमें अच्छी आदतों, उत्तरदायित्व की भावना, आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, कौशल, संतोष, आर्थिक सुरक्षा, नैतिक विकास, आदि गुणों का समुचित विकास हो (binitamaurya.com) और वह समाज व राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान दे सकें।
2. नियोजन–
नियोजन से तात्पर्य- किसी भी कार्य को करने के पहले जो आवश्यक योजना बनाई जाती है उसे नियोजन कहते हैं। किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए नियोजन अति महत्वपूर्ण है। नियोजन योजना के निर्माण में सहायक होता है।
3. नियंत्रण–
नियंत्रण से तात्पर्य- जब हम किसी कार्य को करने की योजना बना लेते हैं तो समय-समय पर उस कार्य को करने के लिए उसके नियमों में और कार्य करने के ढंग में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किए जाते हैं। इन परिवर्तनों को लागू करना ही (binitamaurya.com)नियंत्रण कहलाता है।
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4. मूल्यांकन–
विभिन्न कार्यों के नियोजन का मूल्यांकन अति आवश्यक होता है। जब कोई कार्य पूरा हो जाता है तब उसके गुण दोषों की समीक्षा की जानी चाहिए। जिससे भविष्य के कार्यों की योजना में यथेष्ट परिवर्तन किया जा सके और भविष्य में होने वाली हानियों से बचा जा सके। इस प्रकार गुण दोषों पर ध्यान देना और उनकी समीक्षा करना मूल्यांकन कहलाता है।
प्रश्न:
गृह विज्ञान विषय के क्षेत्र का सविस्तार वर्णन कीजिए। या गृह विज्ञान की विभिन्न शाखाओं पर प्रकाश डाले। अथवा गृह विज्ञान के क्षेत्र कौन-कौन से हैं। या गृह विज्ञान का क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
गृह विज्ञान कला एवं विज्ञान का अनोखा संगम है जिसमें कला के विषयों के साथ ही विज्ञान विषय की भी पढ़ाई कराई जाती है। गृह विज्ञान विषय मानव जीवन, घर-परिवार के प्रत्येक पहलू से संबंधित है। इसलिए गृह विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र अत्यधिक व्यापक व बहुपक्षीय है। गृह विज्ञान विषय का मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों के रहन-सहन के स्तर में सुधार लाना व ऊंचा उठाना है जिससे परिवार के सभी सदस्यों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य उत्तम रहे, व उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति सुगमतापूर्वक हो सके। उपलब्ध ‘भौतिक व मानवीय‘ साधनों का उपयोग हो सके तथा पारिवारिक सदस्यों के आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों का विकास हो सके। गृह विज्ञान का क्षेत्र बहुत विस्तृत एवं व्यापक है (binitamaurya.com) जिसमें सफल गृह-निर्माण हेतु आवश्यक सभी विषय आते हैं।
गृह विज्ञान के मुख्य रूप से पांच विषय या अंग हैं। जो निम्नलिखित हैं –
1. आहार विज्ञान एवं पोषण
2. वस्त्र विज्ञान एवं परिधान
3. गृह प्रबंध
4. बाल विकास एवं पारिवारिक संबंध
5. शिक्षा तथा विस्तार
गृह विज्ञान का क्षेत्र प्रारंभ में एक कोषीय था और इसमें सामाजिक और शैक्षिक प्रभावों का अध्ययन किया जाता था। परंतु आज यह विज्ञान इतना विकसित व विस्तृत हो गया है कि इसके प्रत्येक विषय या अंग के अपने उप-विभाग भी विकसित(binitamaurya.com) हो चुके हैं। ये उप-विभाग निम्नलिखित है –
1. आहार विज्ञान एवं पोषण
• पोषण विज्ञान
• पोषण– औषधीय पोषण तथा सामुदायिक पोषण
• भोज्य सेवाएं
2. वस्त्र विज्ञान एवं परिधान
• वस्त्र विज्ञान
• तंतु विज्ञान
• टेक्सटाइल इंडस्ट्री
• परिधान (वस्त्रों) का रखरखाव तथा देखभाल (लॉन्ड्री सेवा)
3. गृह प्रबंध
• संसाधन प्रबंधन
• आवास और उपकरण
• आंतरिक सजावट
• उपभोक्ता शिक्षा (अर्थशास्त्र)
4. बाल विकास एवं पारिवारिक संबंध
• बाल (शिशु) कल्याण
• विवाह और परिवार शिक्षा
• किशोरावस्था, परिवार अवस्था और वृद्धावस्था में निर्देशन
5. शिक्षा तथा विस्तार
• गृह विज्ञान अध्ययनकर्ता की शैक्षिक तैयारी
• सामुदायिक सेवा तथा कल्याण
• अनौपचारिक शिक्षा
गृह विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र
1. आहार एवं पोषण विज्ञान –
गृह विज्ञान विषय में आहार एवं पोषण विज्ञान एक अत्यावश्यक महत्वपूर्ण विषय है। इस विषय के अंतर्गत भोजन तथा पोषण के बारे में विस्तृत अध्ययन करवाया जाता है। जिसमें मुख्य रुप से भोजन के कार्य, आहार के तत्वों, संतुलित आहार, आहार-आयोजन, भोजन बनाने की विभिन्न विधियां, खाद्य संरक्षण व भंडारण, पोषण-प्रक्रिया तथा रोगावस्था में आहार द्वारा रोगों के उपचार का अध्ययन सैद्धांतिक और व्यवहारिक के तौर पर दिया जाता है।
2. बैक्टीरिया विज्ञान –
सभी प्राणियों के आहार एवं स्वास्थ्य से अनेक जीवाणुओं का गहरा संबंध है। बैक्टीरिया प्रकृति में सर्वव्यापी है, वह हमारे आहार एवं स्वास्थ्य पर अनुकूल तथा प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। कुछ बैक्टीरिया हमारे भोजन के पाचन और पोषण में लाभदायक होते हैं, वे हमारे लिए खाना पचाते हैं, विटामिन्स बनाते हैं और हमें इंफेक्शन से भी बचाते हैं। जबकि कुछ अन्य बैक्टीरिया हमारे भोज्य पदार्थों को न केवल दूषित करते हैं बल्कि उन्हें नष्ट भी कर सकते हैं। सर्दी-जुकाम से लेकर मलेरिया, डेंगू और एड्स आदि सभी बीमारियां बैक्टीरिया (वायरस) की वजह से होते हैं। अतः इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर गृह विज्ञान के(binitamaurya.com) अंतर्गत बैक्टीरिया विज्ञान का भी व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
3. प्राथमिक चिकित्सा एवं परिचर्या –
आकस्मिक घटनाओं में घायल या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों, रोगियों को तुरंत आवश्यक एवं संभव उपचार उपलब्ध कराना ही प्राथमिक चिकित्सा कहलाता है। प्राथमिक चिकित्सा में रोगी व्यक्ति की सेवा-सुश्रुषा, दवाओं का समय पर सेवन करना, आरामदाय व आवश्यक बिस्तर का प्रबंध करना, ताप, नाड़ी, श्वांस-गति, आदि का चार्ट बनाना आदि गृह परिचर्या के अंतर्गत आते हैं। गृह परिचर्या भी प्राथमिक चिकित्सा के समान ही महत्वपूर्ण है। किसी भी रोगी की कितनी ही अच्छी चिकित्सा की गई हो किंतु यदि उसकी देखभाल न की जाए तो वह चिकित्सा लाभप्रद नहीं होती है। इन सभी विषयों का व्यवस्थित अध्ययन गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र में सम्मिलित है।
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4. मातृ-कला तथा शिशु कल्याण –
गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र मातृ-कला एवं शिशु-कल्याण को भी सम्मिलित किया गया है। परिवार की सुख समृद्धि के लिए मातृ-कला तथा शिशु-कल्याण को सभ्य समाज में महत्वपूर्ण एवं अति आवश्यक माना जाता है। इसके अंतर्गत बालकों (शिशुओं) की परवरिश, पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा की समुचित जानकारी दी जाती है। गर्भावस्था, प्रसव-काल व प्रसव उपरांत माता की देखरेख का व्यापक अध्ययन किया जाता है तथा शिशु-कल्याण संबंधी समस्त गति-विधियों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
5. गृह प्रबंध –
मनुष्य की तीसरी मूलभूत आवश्यकता ‘आवास‘ है। गृह प्रबंध के अंतर्गत आवास तथा इसके प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है। गृह कार्यों की व्यवस्था, पारिवारिक कर्तव्यों का ज्ञान, आपसी संबंध, आदि गृह प्रबंध के अंतर्गत आते हैं। गृह प्रबंध के अंतर्गत उचित निर्णय लेना, व्यवस्थापन करना, समय, शक्ति व धन का उचित उपयोग करना, उपलब्ध साधनों की व्यवस्था करना, कार्य सरलीकरण, आदि बातों की जानकारी सम्मिलित होती है।
6. अर्थ-व्यवस्था –
गृह विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में अर्थ-व्यवस्था को भी सम्मिलित किया गया है। परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं के अनुसार परिवार की आय के प्रबंध के उचित तरीके, बजट निर्माण, बजट के तरीके, बजट का स्तर, विनियोग, आय प्राप्ति के स्रोत,अधिक आय प्राप्त के तरीके व परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं का सही अनुमान लगाना अर्थ-व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं।
7. सफाई, सजावट, आदि से संबंधित जानकारी –
एक सुव्यवस्थित स्वच्छ घर में ही परिवार के सदस्यों का उचित शारीरिक व मानसिक विकास संभव है। घर की सफाई और सजावट आदि से संबंधित जानकारी होना (binitamaurya.com) गृह विज्ञान का सबसे प्रमुख क्षेत्र है।
8. स्वास्थ्य रक्षा –
स्वास्थ्य रक्षा से तात्पर्य है: अपना व पारिवारिक सदस्यों के स्वास्थ्य की देखभाल और रक्षा करना। गृह विज्ञान विषय के अंतर्गत सामान्य व संक्रामक रोगों के उपचार एवं बचाव की जानकारी के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य हेतु शुद्ध वायु, पर्याप्त प्रकाश, स्वास्थ्यप्रद भोजन, स्वच्छता, पर्याप्त विश्राम तथा व्यायाम, स्वच्छ घर का ज्ञान भी आवश्यक है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर गृह विज्ञान के अंतर्गत स्वास्थ्य रक्षा का भी व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
9. वस्त्र-विज्ञान एवं परिधान –
व्यक्ति की पहली आवश्यकता ‘भोजन‘, दूसरी ‘वस्त्र‘ तथा तीसरी ‘आवास‘ है। ‘वस्त्र विज्ञान एवं परिधान‘ के अध्ययन से वस्त्रों के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होता है। इसके अंतर्गत वस्त्र बनाने वाले प्राकृतिक एवं कृत्रिम तंतुओं, उनकी परिसज्जा एवं परिष्कृति, वस्त्रों की देखभाल, संचयन, संरक्षण, वस्त्रों की उचित प्रकार से धुलाई, आदि का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। परिधान विज्ञान के अंतर्गत पारिवारिक सदस्यों के लिए विशेष अवसरों एवं मौसम के अनुकूल वस्त्रों का चयन, वस्त्रों की कटाई सिलाई तथा उनकी सज्जा आदि का भी अध्ययन किया जाता है। सभी विषय गृह विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित है।
10. गृह-गणित –
संख्याओं के विज्ञान को जब गृह-कार्यों तथा गृह-व्यवस्था संबंधी क्रिया-कलापों में इस्तेमाल किया जाता है तो उसे गृह-गणित कहा जाता है। इसके द्वारा क्रय-विक्रय में लाभ-हानि, प्रतिशत, एवं साधारण ब्याज संबंधी सरल गणनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है जो परिवार की अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाए रखने में भी सहायक होता है।
11. बाल-विकास तथा पारिवारिक संबंध –
गृह विज्ञान का यह एक अति उपयोगी एवं महत्वपूर्ण विषय है। इसमें शिशु के जन्म से उसके आगे के क्रमिक विकास का अध्ययन होता है। बाल विकास तथा पारिवारिक संबंध के अंतर्गत बालकों की शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, बौद्धिक, सृजनात्मक, खेल, अनुशासन चरित्र के अध्ययन के साथ (binitamaurya.com) पारिवारिक संबंधों जैसे: परिवार के संगठन, विशेषताओं, महत्त्व, कार्यों एवं दायित्वों तथा बदलते सामाजिक प्रतिमानों आदि का अध्ययन किया जाता है।
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