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खण्ड ख: समाजशास्त्र तथा बाल-कल्याण

समाजशास्त्र: एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान-लेख -1

Hello Friends,
इस लेख में हम “एकाकी परिवार” के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे। हम जानेंगे कि एकाकी या एकल परिवार का क्या अर्थ होता है, इसकी सटीक परिभाषा क्या है, साथ ही एकाकी परिवार के लाभ (फायदे) और उससे जुड़ी प्रमुख कठिनाइयाँ (हानियाँ) क्या-क्या हो सकती हैं। तो चलिए शुरू करते हैं।

भूमिका (Introduction)

एकाकी परिवार वह पारिवारिक संरचना है जिसमें केवल पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। यह संयुक्त परिवार की तुलना में छोटा, स्वायत्त (मतलब स्वतंत्र) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधारित होता है।

आधुनिक जीवनशैली, औद्योगीकरण और पश्चिमी प्रभावों के कारण एकाकी परिवार की प्रवृत्ति बढ़ी है। आज यह विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में एक सामान्य सामाजिक इकाई के रूप में देखा जाता है।

 

एकाकी परिवार का अर्थ

एकाकी परिवार वह सामाजिक इकाई है जिसमें पति-पत्नी अपने अविवाहित बच्चों के साथ या बच्चों के बिना एक स्वतंत्र घर में रहते हैं। यह परिवार संयुक्त परिवार के विघटन के परिणामस्वरूप उभरा है, जहाँ लोग पारंपरिक और कठोर परिवारिक नियंत्रण से मुक्त होकर स्वायत्तता की ओर बढ़े। आज के युग में, नवदम्पति अक्सर परंपरागत संयुक्त परिवार की जगह अपने छोटे, स्वतंत्र घर की कल्पना करते हैं, जहाँ वे अपनी जीवनशैली और निर्णय स्वयं नियंत्रित कर सकें।

अर्थ –

एकाकी अथवा एकल परिवार वह परिवार होता है जिसमें केवल पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। यह परिवार व्यवस्था का सबसे छोटा और सरल रूप माना जाता है।

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एकाकी परिवार की परिभाषा :

प्रसिद्ध विद्वानों के द्वारा एकाकी परिवार की परिभाषाएं – इस प्रकार हैं

  1. ऑगबर्न और निमकॉफ के अनुसार, “निःसन्तान पति-पत्नी अथवा सन्तान रहित अकेले पति व पत्नी, कम या अधिक सन्तान वाली स्थायी समिति ही एकाकी परिवार है।”
  2. प्रो. आई. आर. लॉबी के अनुसार, “एकाकी परिवार में प्रत्येक पति-पत्नी और अपरिपक्व आयु के बच्चे समुदाय के शेष लोगों से अलग एक इकाई का निर्माण करते हैं।”

संक्षेप में, ये परिभाषाएँ बताती हैं कि एकाकी परिवार एक छोटा, स्वतंत्र और आत्मनिर्भर परिवार होता है, जिसमें केवल पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं, और जो बाहरी सामाजिक समूह से अलग होता है।

 

एकाकी परिवार के लाभ –

  1. स्वतंत्रता:

एकाकी परिवार छोटे होते हैं, इसलिए पति-पत्नी को अपने घर को अपनी इच्छानुसार चलाने की पूरी स्वतंत्रता मिलती है। यहाँ कोई बाहरी नियंत्रण या दबाव नहीं होता। वे अपनी जिम्मेदारियाँ स्वयं संभालते हैं, अपने और बच्चों के भविष्य के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होते हैं। इस आत्मनिर्भरता से उन्हें संतुष्टि और खुशी मिलती है। साथ ही, वे अपने शौक और मनोरंजन के लिए भी स्वतंत्र रहते हैं, जिससे आपसी प्रेम और उत्साह बना रहता है।

  1. अन्य रिश्तेदारों से प्रेमपूर्ण संबंध:

एकाकी परिवार होने के कारण परिवार के अन्य सदस्य अलग-अलग रहते हैं। इससे आपसी झगड़े कम होते हैं। वे अधिकतर त्योहार, विवाह या खास अवसरों पर मिलते हैं, जहां प्रेम, सहानुभूति और सहयोग बरकरार रहता है। दूरी के कारण छोटी-मोटी अनबन नहीं होती, और हर कोई अपनी स्वतंत्रता का आनंद लेता है।

  1. बच्चों का व्यक्तित्व विकास:

एकाकी परिवार में माता-पिता को बच्चों की देखभाल, शिक्षा और व्यक्तित्व विकास पर पूरा ध्यान देने का मौका मिलता है। वे बच्चों की रुचियों और प्रतिभा के अनुसार उनका सही मार्गदर्शन कर पाते हैं, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है और माता-पिता भी अपने बच्चों के विकास से संतुष्ट रहते हैं।

  1. परिवार की जिम्मेदारी:

एकाकी परिवार में माता-पिता अपने और बच्चों के भविष्य के लिए पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। वे आर्थिक रूप से योजना बनाकर धन की बचत करते हैं ताकि बच्चों की उच्च शिक्षा और विवाह के खर्चे पूरे हो सकें। यहाँ हर सदस्य आत्मनिर्भर होता है और अपने कार्य स्वयं करता है। पति-पत्नी मिलकर अपने परिवार का सुख-शांतिपूर्ण वातावरण बनाते हैं।

  1. पत्नी द्वारा आर्थिक सहयोग :

आज के महंगाई के युग में परिवार का संचालन केवल पति की आय पर निर्भर नहीं रह सकता। यदि पत्नी शिक्षित हो और नौकरी करे, तो वह परिवार की आर्थिक सहायता कर सकती है। एकाकी परिवार में महिलाओं को काम करने का अधिक समर्थन मिलता है और वे अपने घर-परिवार के साथ आर्थिक रूप से भी योगदान करती हैं।

एकाकी परिवार में स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता, आर्थिक स्थिरता और आपसी प्रेम होता है। पति-पत्नी के बीच गहरा साथ रहता है, जिससे परिवार का माहौल सुखमय और संतुलित बनता है। इसका सकारात्मक प्रभाव बच्चों के सर्वांगीण विकास पर भी पड़ता है।

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एकाकी परिवार की कठिनाइयाँ –

एकाकी परिवार में जहाँ स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता होती है, वहीं इसके साथ कुछ समस्याएँ और चुनौतियाँ भी सामने आती हैं। ये इस प्रकार हैं:

  1. नन्हे बच्चों की देखभाल में कठिनाई: जब पति-पत्नी दोनों कामकाजी हों और घर में कोई बुज़ुर्ग न हो, तो छोटे बच्चों की देखभाल करना मुश्किल हो जाता है। माँ के काम पर जाने के समय बच्चे को किसके पास छोड़ा जाए, यह एक बड़ी चिंता बन जाती है।
  1. अत्यधिक काम का बोझ: परिवार छोटा होने के कारण हर ज़िम्मेदारी पति-पत्नी पर ही होती है—बच्चों को स्कूल छोड़ना, लाना, बीमार पड़ने पर देखभाल आदि। इससे उनकी कार्यक्षमता पर असर पड़ता है और थकान बढ़ती है।
  1. नौकरों पर निर्भरता: गृहकार्य और बच्चों की देखभाल के लिए नौकर रखना जरूरी हो जाता है, लेकिन आजकल नौकरों पर पूरी तरह भरोसा करना कठिन है। उनकी गैर-मौजूदगी या गैर-जिम्मेदारी परेशानी बढ़ा देती है।

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  1. बच्चों में अनुशासन की कमी: माता-पिता की व्यस्तता के कारण बच्चे अकेलेपन का शिकार हो सकते हैं और अनुशासनहीन हो जाते हैं। उन पर ठीक से निगरानी नहीं रखी जा पाती, जिससे वे गलत संगत में भी पड़ सकते हैं।
  1. अतिथि सत्कार में दिक्कत: अगर कोई मेहमान अचानक आ जाए, तो उनके स्वागत-सत्कार के लिए समय निकालना कठिन होता है। अक्सर पत्नी को छुट्टी लेनी पड़ती है, जिससे ऑफिस में उसे परेशानी हो सकती है।
  1. समझौते का अभाव: जब पति-पत्नी के बीच मतभेद होते हैं तो परिवार में कोई बड़ा या तटस्थ सदस्य न होने के कारण बीच-बचाव नहीं हो पाता, जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो सकती है और रिश्तों में दरार आ सकती है।

इस प्रकार, एकाकी परिवार में जहाँ कई फायदे हैं, वहीं ये व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी हैं, जिन्हें समझदारी और सहयोग से सँभालना ज़रूरी होता है।

 

आभार एवं स्रोत: यह लेख गृह विज्ञान – कक्षा 12 (डॉ. श्रीमती उषा मेहरोत्रा) सहित विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है। विषय की स्पष्टता हेतु AI टूल्स का आंशिक सहयोग लिया गया है। इसका उद्देश्य केवल शैक्षिक जानकारी प्रदान करना है। यह सामग्री लेखक के अध्ययन व अनुभव पर आधारित है। किसी आपत्ति या प्रश्न हेतु कृपया संपर्क करें। शिक्षा मंथन (Shiksha Manthan) सत्यनिष्ठ और उत्तरदायी लेखन हेतु प्रतिबद्ध है।

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