प्रिय पाठकों,
अनेक शैक्षणिक कार्यक्रमों की तरह ही गृह विज्ञान प्रसार शिक्षण के भी अनेक चरण हैं। इस लेख में हम गृह विज्ञान शिक्षण के विभिन्न चरणों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। तो आइए शुरू करते हैं।
गृह विज्ञान प्रसार शिक्षण के विभिन्न चरण
विस्तार शिक्षा या प्रसार शिक्षा, शिक्षण पद्धति का एक विस्तृत रूप है। गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा को ग्रामीण स्तर तक प्रसार कार्यकर्ता द्वारा पहुंचाया जाता है और प्रसार कार्यक्रमों का क्रियान्वयन भी उसी के द्वारा किया जाता है। किंतु प्रसार कार्यक्रमों की सफलता के लिए उसे कुछ चरणों से होकर गुजरना पड़ता है।
प्रसार शिक्षण या अन्य अनेक शैक्षणिक कार्यक्रमों की तरह ही गृह विज्ञान प्रसार शिक्षण के भी विभिन्न चरण है। जो निम्नलिखित हैं-
1. स्थानीय स्थितियों का अवलोकन करना
गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता द्वारा ग्रामीणों के लिए किसी भी कार्यक्रम को नियोजित करने से पहले वहां की स्थानीय स्थितियों का अवलोकन किया जाना अति आवश्यक है।
जैसे – वहां के उपलब्ध संसाधन, ग्रामीणों की शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति कैसी है? उनका बौद्धिक स्तर एवं उनकी ज्वलंत समस्याएं, स्त्रियों की क्या स्थिति है? वे परदे में रहती है या घर से बाहर निकलती हैं? उनका स्वास्थ्य कैसा है? आदि बातों की जानकारी करने के पश्चात ही गृह विज्ञान प्रसार कार्यकत्री को उनके लिए कार्यक्रम बनाने चाहिए।
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2. उद्देश्यों को निर्धारित करना
गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता द्वारा स्थानीय स्थितियों का ठीक प्रकार से अवलोकन कर लेने के बाद ही प्रसार कार्यक्रम के उद्देश्यों का निर्धारण किया जाना चाहिए। अगर गावों मैं संक्रामक रोग फैला है या गांव में जल की व्यवस्था ठीक प्रकार से नहीं है अथवा वहां की स्त्रियों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तब उन समस्याओं एवं जरूरत को ध्यान में रखकर ही कार्यक्रम के उद्देश्यों का निर्धारण करना चाहिए। अधिक तीव्रता वाली समस्याओं का चयन करके पहले उसका निराकरण करने का ही प्रयास करना चाहिए।
3. शिक्षण के लिए नियोजन करना
गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता को ग्रामीण जनता या स्त्रियों को शिक्षित करने के लिए शिक्षण विधियों का चयन करना होता है। प्रसार कार्यकर्ता को शिक्षण सामग्री या विधियों का चयन बहुत सोच-विचार करके करना चाहिए। जिन शिक्षण विधियों का चयन समस्याओं के निवारण के लिए किया जाए उसका प्रयोग करना उसे आना चाहिए।
उदाहरण के लिए – अगर ग्रामीण जनता या स्त्रियां अनपढ़ है तो उन्हें टी. वी. शो, नाटक, सिनेमा, कठपुतली का खेल, विधिप्रदर्शन आदि के माध्यम से शिक्षण दिया जाना चाहिए। उनके लिए बुलेटिन, मैगजीन, चार्ट आदि शिक्षण सामग्री किसी काम की नहीं है।
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4. मूल्यांकन
गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता द्वारा लोगों को शिक्षण के विभिन्न माध्यमों द्वारा शिक्षित करने के बाद उनका मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है जिससे यह देखा जा सके कि जो कार्यक्रम चलाए गए हैं वह कितना लाभप्रद है और कितना सफल हुआ है। अगर ग्रामीण जनता स्त्रियों ने उन्हें अपने दैनिक जीवन में अपनाया है तो उन्हें और अधिक प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है किंतु दैनिक जीवन में नहीं अपनाया है तो कारणों को पता लगाया जाना चाहिए कि किन कारणों से ग्रामीणों ने उन्हें नहीं अपनाया। कारणों को पता कर उनका निवारण करना चाहिए। इसके लिए उसे मूल्यांकन का सहारा लेना पड़ता है। जो एक कठिन लेकिन आवश्यक प्रक्रिया है। इस बात का हमेशा ध्यान रहे कि प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं द्वारा ही मूल्यांकन का कार्य किया जाना चाहिए, जिससे कार्यक्रम की सफलता और असफलता का सही कारण पता चल सके और उनके प्रोत्साहन तथा निवारण के लिए सही सुझाव प्राप्त हो सके।
5. पुनर्विचार
गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्ता को प्रसार शिक्षण के पहले की स्थिति एवं शिक्षण के बाद की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करना होता है उसके पश्चात उसकी कमियों पर पुनर्विचार किया जाता है। और आगे के कार्यक्रम तैयार करते समय उन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
इस प्रकार गृह विज्ञान प्रसार शिक्षण के सभी चरण एक-दूसरे से संबंधित है। कार्यकर्ता द्वारा सभी चरणों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। कार्यक्रम के समाप्त हो जाने के पश्चात उसकी लिखित रिपोर्ट (Written Report) या अभिलेख तैयार कर लेना चाहिए। जिससे भविष्य के कार्यक्रम नियोजित करने एवं क्रियान्वित करने में सहायता मिलती है।
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